आजकल हम लोग इंसानों को पहचानने की क्षमता खोते जा रहे हैं। जब तक हम पाक-साफ रहा करते थे तब तक सामने वालों की गंदगी और बदबू को महसूस कर लिया करते थे। जबसे हमारी शुचिता समाप्त हो गई है, स्वार्थ और अंधे मोह के पाश में जकड़ते जा रहे हैं तभी से हम पर इस कदर धुंध छाने लगी है कि हम सामने वालों की पहचान करना ही भूल गए हैं। आजकल के औसत इंसान की यही स्थिति है। हालांकि बीज अभी खत्म नहीं हुआ है। कुछेक फीसदी लोग हैं जो आज भी औरों को पहचानने की सटीक और सही क्षमता रखते हैं और उनका मूल्यांकन कभी झुठलाया नहीं जा सकता। पर जहाँ अधिकतर लोगों की बात करें, इनमें से अधिकांश लोग अपने स्वार्थों और छोटी-छोटी ऎषणाओं की पूर्ति के लिए जमाने भर में जो कोई प्रभावशाली दिखता-दिखाता है उसका दामन थामने की कोशिश कर लिया करते हैं। हमें लगता है कि हमारे कामों को आसान करने वाले अथवा हमें हर प्रकार से अभय प्रदान करने वाले लोग हैं जिनकी लल्लो-चप्पो करने, मक्खन लगाने, उनके आगे-पीछे घूमने और उनकी परिक्रमाएं करते रहने से उनकी प्रसन्नता पायी जा सकती है। हमारी इसी भूल के कारण कई से नौटंकीबाज और पशुताओं से भरे लोग अपने आपको सर्वशक्तिमान, सर्वस्वीकार्य और संप्रभु समझने लगे हैं और अपने इन भ्रमों से आत्म मुग्ध होकर जो कुछ कर रहे हैं वह पूरी मानवता को शर्मसार करने वाले हैं। अधिकतर लोग इसलिए इन बडे़ और महान लोगों के आगे-पीछे घूमते हैं, उनकी चापलुसी करते हैं ताकि किसी समय वे उनके काम आ सकें। इस भ्रम को अच्छी तरह समझना हो तो हमें अपनी पूरी जिन्दगी का आकलन करते हुए यह देखना होगा कि कितने लोगों से हमने अपने स्वार्थ या भावी कामों को लेकर संबंध बनाए और कितने लोग हमारे किसी काम आ पाए। अपनी बात को छोड़ भी दें तब भी इस किस्म के नब्बे फीसदी लोग केवल बहलाने-फुसलाने में ही माहिर होते हैं, किसी के काम कभी नहीं आ सकते। हमारा दुर्भाग्य कहें या मूर्खता कि हम जो समय आत्म कल्याण, व्यक्तित्व विकास और प्रतिभाओं के निखार में लगाना चाहिए उसका अधिकांश हिस्सा उन लोगों के पीछे जाया कर दिया करते हैं जिन लोगों से हमें निराशा ही हाथ लगती है। इन लोगों के साथ रहते-रहते एक समय बाद हमें यह महसूस होता है कि ये लोग केवल लफ्फाजी करते हुए हमारा उपयोग करते रहे हैं, असल में न ये किसी का भला करने की स्थिति में होते हैं, न किसी का भला इनसे हो सकता है। बहुत से बड़े-बड़े लोग अपने से बड़ों और महान-महान हस्तियों के बीच व साथ रहते हैं लेकिन ये भी किसी के काम नहीं आ पाते। इन बड़ों और महानों के साथ रहने का इन्हें एकमात्र आनंद यही मिलता है कि दूसरे लोगों में इस बात का रुतबा जमता है कि हस्तियों से जान-पहचान है। और इन हस्तियों के सान्निध्य और सभी प्रकार की सेवा के धर्माधर्मों को निभाने के बावजूद ये लोग किसी पात्र इंसान या समुदाय के कल्याण के लिए कह पाने की स्थिति में नहीं होते क्योंकि इन्हें यह भय सताता रहता है कि कहीं आका नाराज न हो जाएं।
केवल और केवल अपनी प्रतिष्ठा को बचाए रखने तथा बड़े लोगों के रसोईघरों, बाथरूम्स और अन्तःपुर तक की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं और तमाम कर्मों के साक्षी, उत्प्रेरक, सहयोगी और भागीदार बनकर खुद को सौभाग्यशाली मानने वाले लोग अपनी साख बढ़ाने और खुद की छवि साफ-सुथरी बनाए रखने की गरज से नाकारा बने हुए रहते हैं।
हालात ये हैं कि दुनिया में बहुत से लोग हैं जिनकी दुकानदारी ही फरेब, झूठ और मक्कारी पर चल रही है और इसी के बूते ये कमा-खा रहे हैं और लोगों को भ्रमित करते हुए मजे मार रहे हैं।
इस तरह के अधिकांश संप्रभुओं की जिन्दगी का अध्ययन किया जाए तो यह साफ तौर पर सामने आएगा कि नब्बे फीसदी लोगों को इनसे निराशा ही हाथ लगती है।
लोग बड़ी तमन्ना से इनका साथ पाने को उतावले रहते हैं, इनके लिए हर समर्पण को तैयार रहते हैं, इनकी बातों में आकर इन्हें भगवान की तरह पूज्य और आदरणीय मानते रहते हैं लेकिन जब मौका आता है तब पता चलता है इनकी असलियत का।
जिन्हें हम अपने से बड़ा, शक्तिमान और समृद्ध मानते हैं उन सभी की स्थिति यह है कि वे लोग भी भिखारियों से कम नहीं हैं। सारे के सारे किसी न किसी से कोई न कोई मांग या आशाओं को लेकर ही साथ रह रहे हैं, साथ निभा रहे हैं और जयगान कर रहे हैंं।
आम भिखारी तो अपने निर्धारित क्षेत्रों में ही परिभ्रमण करते हुए याचना करते रहते हैं और भीख मांग-मांग कर अपना गुजारा करते हैं। कल की चिन्ता इन भिखारियों को सदैव सताती रहती है लेकिन इन समृद्ध भिखारियों के पास सब कुछ होते हुए भी चिन्ताओं की श्रृंखला समाप्त नहीं होती।
फिर इनके लिए कोई एक स्थान या व्यक्ति निश्चित नहीं होता बल्कि एक के बाद एक इंसान और स्थान बदलते रहते हैं। जहाँ कुछ न मिले, वहाँ से आगे बढ़ चलते हैं। जीवन निर्माण के लिए कर्म, प्रतिभा और हुनर ही काम आते हैं इसलिए जो अपने कामों को लेकर याचना करते हैं वे सारे लोग अपना समय बर्बाद करते हैं।
संसार के भिखारियों से जो याचना करते हैं वे सारे लोग भिखारियों से भी गए बीते होते हैं। जो लोग अपना भला चाहते हैं उन्हें चाहिए कि उन लोगों से याचना करना त्यागें जो लोग खुद भिखारियों की तरह जीने के आदी हो गए हैं तथा जिनकी जिन्दगी ही औरों की दया और कृपा पर निर्भर है।
केवल और केवल अपनी प्रतिष्ठा को बचाए रखने तथा बड़े लोगों के रसोईघरों, बाथरूम्स और अन्तःपुर तक की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं और तमाम कर्मों के साक्षी, उत्प्रेरक, सहयोगी और भागीदार बनकर खुद को सौभाग्यशाली मानने वाले लोग अपनी साख बढ़ाने और खुद की छवि साफ-सुथरी बनाए रखने की गरज से नाकारा बने हुए रहते हैं।
हालात ये हैं कि दुनिया में बहुत से लोग हैं जिनकी दुकानदारी ही फरेब, झूठ और मक्कारी पर चल रही है और इसी के बूते ये कमा-खा रहे हैं और लोगों को भ्रमित करते हुए मजे मार रहे हैं।
इस तरह के अधिकांश संप्रभुओं की जिन्दगी का अध्ययन किया जाए तो यह साफ तौर पर सामने आएगा कि नब्बे फीसदी लोगों को इनसे निराशा ही हाथ लगती है।
लोग बड़ी तमन्ना से इनका साथ पाने को उतावले रहते हैं, इनके लिए हर समर्पण को तैयार रहते हैं, इनकी बातों में आकर इन्हें भगवान की तरह पूज्य और आदरणीय मानते रहते हैं लेकिन जब मौका आता है तब पता चलता है इनकी असलियत का।
जिन्हें हम अपने से बड़ा, शक्तिमान और समृद्ध मानते हैं उन सभी की स्थिति यह है कि वे लोग भी भिखारियों से कम नहीं हैं। सारे के सारे किसी न किसी से कोई न कोई मांग या आशाओं को लेकर ही साथ रह रहे हैं, साथ निभा रहे हैं और जयगान कर रहे हैंं।
आम भिखारी तो अपने निर्धारित क्षेत्रों में ही परिभ्रमण करते हुए याचना करते रहते हैं और भीख मांग-मांग कर अपना गुजारा करते हैं। कल की चिन्ता इन भिखारियों को सदैव सताती रहती है लेकिन इन समृद्ध भिखारियों के पास सब कुछ होते हुए भी चिन्ताओं की श्रृंखला समाप्त नहीं होती।
फिर इनके लिए कोई एक स्थान या व्यक्ति निश्चित नहीं होता बल्कि एक के बाद एक इंसान और स्थान बदलते रहते हैं। जहाँ कुछ न मिले, वहाँ से आगे बढ़ चलते हैं। जीवन निर्माण के लिए कर्म, प्रतिभा और हुनर ही काम आते हैं इसलिए जो अपने कामों को लेकर याचना करते हैं वे सारे लोग अपना समय बर्बाद करते हैं।
संसार के भिखारियों से जो याचना करते हैं वे सारे लोग भिखारियों से भी गए बीते होते हैं। जो लोग अपना भला चाहते हैं उन्हें चाहिए कि उन लोगों से याचना करना त्यागें जो लोग खुद भिखारियों की तरह जीने के आदी हो गए हैं तथा जिनकी जिन्दगी ही औरों की दया और कृपा पर निर्भर है।
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