निजी टे्रवल्र्स व ट्रांसपोर्टर कहां से ला रहे बड़े नोट
बीकानेर(जयनारायण बिस्सा)। नोट बंदी के कारण दूसरे कारोबारियों को भले दिक्कत हो रही हो। लेकिन नकदी पर टिका ट्रांसपोर्ट व निजी ट्रेवल्र्स का व्यवसाय न केवल इस समस्या से आसानी से निपट रहा है बल्कि अपनी काली कमाई को धड़ल्ले से सफेद कर रहा है। जिले मेें भी ट्रांसपोर्टरों व निजी ट्रेवल्र्स एजेंसियों के जरिये काली कमाई को सफेद करने का धंधा बेखौफ चल रहा है।सरकार ने पेट्रोल पंपों पर पुराने नोट चलाने की इजाजत दे रखी है। ट्रांसपोर्टर पेट्रोल पंपों से उधार में डीजल लेते हैं, लिहाजा यह सुविधा उनके लिए वरदान साबित हुई है। इन दिनों पूरे देश में ट्रक खड़े हुए हैं। ये ट्रकों के उस विशाल बेड़े का हिस्सा हैं जो परमिट पर चलते हैं। ये ट्रक अक्सर उन लघु व मझोले उद्योगों का माल ढोते हैं जिनका 75 फीसदी लेनदेन नकदी में होता है। ट्रांसपोर्टरों की मानें तो ये ट्रक इसलिए खड़े हैं क्योंकि उनके पास नक दी नहीं है। माल ढोने वाले हर ड्राइवर को रास्ते के खर्च के लिए पर्याप्त नकदी की जरूरत पड़ती है। सरकार ने कैश निकासी की सीमा को 10 हजार और 24 हजार रुपये पर सीमित कर दिया है। लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि ट्रांसपोर्टरों की रुचि माल बुक करने से ज्यादा अपनी काली कमाई को सफेद करने में है। इनका आधे से ज्यादा लेनदेन नकदी में होता है और सरकार अब तक कैरिज बाय रोड एक्ट लागू नहीं करा सकी है। लिहाजा अधिकांश ट्रांसपोर्टर या कॉमन कैरियर बिना पंजीकरण के कारोबार चला रहे हैं। किसी रिक ॉर्ड में न होने से सरकार को कभी इनकी असली कमाई का पता नहीं चलता। सूत्रों के मुताबिक, ‘ज्यादातर बड़े ट्रांसपोर्टरों के पास 500/1000 रुपये के पुराने नोटों का अकूत जखीरा है। पेट्रोल पंपों पर पुराने नोट चलाने की सुविधा दिए जाने से इन्हें इस गैरकानूनी कमाई क ो ठिकाने लगाने का बढिय़ा मौका मिल गया है। आमतौर पर ट्रांसपोर्टरों के ट्रक पेट्रोल पंपों से उधार में डीजल भरवाते हैं। इसका भुगतान छह महीने से लेकर साल भर बाद किया जाता है। लेकिन इन दिनों ढुलाई ठप होने के बावजूद ये पुराने से पुराना उधार एक झटके में चुका रहे हैं। इसके बावजूद उनकी कोशिश है कि सरकार उन्हें रोजाना पांच लाख रुपये नकदी निकासी की छूट दे दे। इसके लिए परिवहन मंत्रालय पर दबाव बनाया जा रहा है। दरअसल, पेट्रोल पंपों पर पुराने नोट चलाने की सुविधा और टोल से छूट मिलने तथा बार-बार तिथियां बढ़ाए जाने से उनके हौसले बढ़ गए हैं। जिले में बड़े नोट चलन से बाहर होने के कारण लोगों के पास छोटे नोटों की कमी भी चल रही है। ऐसे में बाजार में भी काम-धंधे मंदे हो चले हैं। जिसका असर ट्रेवल्र्स व ट्रांसपोर्टरों पर भी पड़ा है। टे्रवल्र्स कम्पनियों की ओर से यात्रियों को नई करंसी पर ही यात्रा की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है, जबकि पेट्रोल पम्पों से डीजल भरवाने के लिए हजार व पांच सौ के पुराने नोट दिये जा रहे है ं। जिले और संभाग के अनेक जिलों में डीजल पम्पों पर यह खेल खूब खेला जा रहा है। ऐसा ही ट्रांसपोर्टर भी कर रहे हैं। बाजार में मंदा होने के कारण माल की बुकिंग ट्रांसपोर्ट कम्पनियों पर नहीं हो रही, इसके बावजूद डीजल के नाम पर काली कमाई के बड़े नोट डीजल पम्पों पर चलाये जा रहे हैं। हालांकि ट्रेवल्र्स व ट्रांसपोर्टर अन्य जरूरतों के लिए छोटे नोटों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए डीजल पम्पों पर बड़े नोट चलाये जाने का दावा कर रहे हैं।
बीकानेर(जयनारायण बिस्सा)। नोट बंदी के कारण दूसरे कारोबारियों को भले दिक्कत हो रही हो। लेकिन नकदी पर टिका ट्रांसपोर्ट व निजी ट्रेवल्र्स का व्यवसाय न केवल इस समस्या से आसानी से निपट रहा है बल्कि अपनी काली कमाई को धड़ल्ले से सफेद कर रहा है। जिले मेें भी ट्रांसपोर्टरों व निजी ट्रेवल्र्स एजेंसियों के जरिये काली कमाई को सफेद करने का धंधा बेखौफ चल रहा है।सरकार ने पेट्रोल पंपों पर पुराने नोट चलाने की इजाजत दे रखी है। ट्रांसपोर्टर पेट्रोल पंपों से उधार में डीजल लेते हैं, लिहाजा यह सुविधा उनके लिए वरदान साबित हुई है। इन दिनों पूरे देश में ट्रक खड़े हुए हैं। ये ट्रकों के उस विशाल बेड़े का हिस्सा हैं जो परमिट पर चलते हैं। ये ट्रक अक्सर उन लघु व मझोले उद्योगों का माल ढोते हैं जिनका 75 फीसदी लेनदेन नकदी में होता है। ट्रांसपोर्टरों की मानें तो ये ट्रक इसलिए खड़े हैं क्योंकि उनके पास नक दी नहीं है। माल ढोने वाले हर ड्राइवर को रास्ते के खर्च के लिए पर्याप्त नकदी की जरूरत पड़ती है। सरकार ने कैश निकासी की सीमा को 10 हजार और 24 हजार रुपये पर सीमित कर दिया है। लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि ट्रांसपोर्टरों की रुचि माल बुक करने से ज्यादा अपनी काली कमाई को सफेद करने में है। इनका आधे से ज्यादा लेनदेन नकदी में होता है और सरकार अब तक कैरिज बाय रोड एक्ट लागू नहीं करा सकी है। लिहाजा अधिकांश ट्रांसपोर्टर या कॉमन कैरियर बिना पंजीकरण के कारोबार चला रहे हैं। किसी रिक ॉर्ड में न होने से सरकार को कभी इनकी असली कमाई का पता नहीं चलता। सूत्रों के मुताबिक, ‘ज्यादातर बड़े ट्रांसपोर्टरों के पास 500/1000 रुपये के पुराने नोटों का अकूत जखीरा है। पेट्रोल पंपों पर पुराने नोट चलाने की सुविधा दिए जाने से इन्हें इस गैरकानूनी कमाई क ो ठिकाने लगाने का बढिय़ा मौका मिल गया है। आमतौर पर ट्रांसपोर्टरों के ट्रक पेट्रोल पंपों से उधार में डीजल भरवाते हैं। इसका भुगतान छह महीने से लेकर साल भर बाद किया जाता है। लेकिन इन दिनों ढुलाई ठप होने के बावजूद ये पुराने से पुराना उधार एक झटके में चुका रहे हैं। इसके बावजूद उनकी कोशिश है कि सरकार उन्हें रोजाना पांच लाख रुपये नकदी निकासी की छूट दे दे। इसके लिए परिवहन मंत्रालय पर दबाव बनाया जा रहा है। दरअसल, पेट्रोल पंपों पर पुराने नोट चलाने की सुविधा और टोल से छूट मिलने तथा बार-बार तिथियां बढ़ाए जाने से उनके हौसले बढ़ गए हैं। जिले में बड़े नोट चलन से बाहर होने के कारण लोगों के पास छोटे नोटों की कमी भी चल रही है। ऐसे में बाजार में भी काम-धंधे मंदे हो चले हैं। जिसका असर ट्रेवल्र्स व ट्रांसपोर्टरों पर भी पड़ा है। टे्रवल्र्स कम्पनियों की ओर से यात्रियों को नई करंसी पर ही यात्रा की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है, जबकि पेट्रोल पम्पों से डीजल भरवाने के लिए हजार व पांच सौ के पुराने नोट दिये जा रहे है ं। जिले और संभाग के अनेक जिलों में डीजल पम्पों पर यह खेल खूब खेला जा रहा है। ऐसा ही ट्रांसपोर्टर भी कर रहे हैं। बाजार में मंदा होने के कारण माल की बुकिंग ट्रांसपोर्ट कम्पनियों पर नहीं हो रही, इसके बावजूद डीजल के नाम पर काली कमाई के बड़े नोट डीजल पम्पों पर चलाये जा रहे हैं। हालांकि ट्रेवल्र्स व ट्रांसपोर्टर अन्य जरूरतों के लिए छोटे नोटों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए डीजल पम्पों पर बड़े नोट चलाये जाने का दावा कर रहे हैं।
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