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रियासत काल से लेकर आज तक ईसर गणगौर की सवारी शाही लवाजमे के साथ निकालती है

दाँतारामगढ़ -दांता रियासत काल से ही शाही लवाजमे के साथ दांता ग्राम में ईसर गणगौर की सवारी निकलती थी जिसमे निकलने वाली ईसर गणगौर की मूर्तिया सप्तधातु से बनी हुई थी उनकी आँखों में सच्चे हीरे लगे हुए दांता ग्राम की ईसर गणगौर की मुर्तिया ही थी जो बिल्कुल सजीव जैसी लगती थी। ईसर जी की ढ़ाल व तलवार पर नक्काशी के साथ ही सोने  की जड़ावट थी। गणगौर के सोने के आभूषण, बोरडा व बाजूबंद जौहरी की कला का नमूना थे।
दांता ग्राम की ईसर गणगौर की सवारी को देखने आस पास के गांवो  लोग आते थे। औरते मधुर स्वर में गीत गाती थी। सवारी दांता गढ़ से गणगौरी मैदान वर्तमान बस स्टेण्ड तक निकलती थी। जहाँ गणगौर का मेला भरता था मेले में ऊँट दौड़ सहित कई प्रतियोगिताओं का आयोजन होता था  सवारी पर होने वाला समस्त व्यय राजपरिवार द्वारा ही वहन किया जाता था।
  रियासत काल  के साथ साथ सब कुछ बदल गया  वर्तमान में सप्तधातु के  स्थान पर निकलने वाली प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की मुर्तिया कठपुतली जैसी दिखती है। राजपरिवार अपनी परम्परा निभा रहा है।
राजपरिवार के सहयोग से व ग्रामवासियों के कुशल प्रबंध एवम् भागीदारी से पूर्व अवस्था फिर से कायम की जा सकती है लेकिन ग्रामवासियों के सहयोग के अभाव में राजपरिवार भी केवल अपनी खानदानी परम्पराओ को निभा रहा है। सीकर जिले की सबसे बड़ी चालीस गावों की रियासत है । समुद्र सूख जाता है तो भी क्या कीचड़ में भी कमल खिलता ही है। आज भी राजपरिवार के वंशज अपनी आन बान व शान के लिए ही अपनी पूर्वजो द्वारा चलाई  गयी परम्पराओं व रीती रिवाजों को बखूबी निभा रहे है। ग्रामवासियों द्वारा सहयोग दिया जाकर उन परम्पराओं को अच्छे ढंग से निभाया जा सकता है लेकिन व्यवस्था करने का जिम्मा ग्रामवासि ही निभा सकते है।
श्रीमान् ठाकुर साहब मदनसिंह जी की मूर्ति गणगौरी मैदान में लगाकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धाजंली दी जा सकती है या फिर पास ही स्थित चिल्ड्रन पार्क में उनकी मूर्ति लगनी चाहिए। जिस योद्धा ने प्रत्येक त्यौहार चाहे होली हो या गणगौर या दीपावली व ईद सार्वजनिक रूप से समस्त ग्रामवासियों के साथ मनाया था आज हम उसे कैसे भुला सकते है। आज हम दिशाविहीन है हमे नेतृत्व का अभाव खटक रहा है हमे आवश्यकता है ठाकुर साहब जैसे मसीहा की जो हमारी खुशिया वापिस लौटा सके। हमारा अमन चैन शांति व भाईचारा हमे फिर से वापस लौट सके। तीज  गणगौर जैसे त्यौहारों के जरिये वापिस दे सकें। आज भी दाँता राजपरिवार ईसर गणगौर व तीज की सवारी शाही लवाजमे के साथ निकालते है ।
संकलनकर्ता : प्रदीप कुमार सैनी, लिखासिंह सैनी, एन. आर. खेतान, विनोद कुमार शर्मा (दांता ग्राम)।