रविवार, 31 दिसंबर 2017

आस्था जगाता अनूठा पर्वत ... जहाँ श्रृंगी ऋषि ने रमायी थी धूँणी- डॉ. दीपक आचार्य

राजसमन्द परिक्रमा
धर्म-अध्यात्म, ऎतिहासिक थातियों, अद्भुत शौर्य-पराक्रम भर ऎतिहासिक वीर-वीरांगनाओं, कला-संस्कृति और नैसर्गिक रमणीयता की दृष्टि से भारत भर में अपनी अन्यतम पहचान रखने वाला राजस्थान का राजसमन्द जिला सदियों से श्रद्धा, आस्था और पर्यटन की त्रिवेणी बहाता रहा है।

यहाँ के सघन वनों और पर्वतों में ऎसे-ऎसे मनोहारी और चित्ताकर्षक दर्शनीय एवं पर्यटन स्थल विद्यमान हैं कि जिनका कोई सानी नहीं।  राजसमन्द की धरा असीम आत्मशान्ति और शाश्वत तृप्ति का बोध कराती हुई तन-मन को सुकून के अजस्र फव्वारों से नहला देने का सामर्थ रखती है। यही वजह है कि यह छोटा सा जिला अपने भीतर बड़ी-बड़ी इतिहास गाथाओं और विलक्षणओं को समाहित किए हुए है।

हर तरफ पसरा है सुकून


राजसमन्द जिले में धार्मिक आस्थाओं की धाराएं-उपधाराएं सदियों से बहती रही हैं। भौगोलिक और प्राकृतिक दृष्टि से कई खूबियों से भरा-पूरा यह क्षेत्र प्राचीनकाल से ऋषि-मुनियों और तपस्वियों की तपःस्थली रहा है जहाँ इन्होंने कठोर तप करते हुए ईश्वर से साक्षात्कार किया और लोक कल्याण का दरिया बहाते रहे।

इसी परंपरा में त्रेता युग के श्रेष्ठ आचार्य श्रृंगी ऋषि का नाम बहुश्रुत है, जिनके बारे में लोक विख्यात है कि उन्होंने राजसमन्द के बीहड़ों में तपस्या की। आज भी श्रृंगी ऋषि के नाम से आस्था और भक्ति के अनेक स्थल विद्यमान हैं जहाँ भक्तों की श्रद्धा का ज्वार उमड़ता रहता है।

इन्हीं में राजसमन्द जिले की कुंभलगढ़ तहसील अन्तर्गत सेवन्त्री गांव के पुठिया क्षेत्र में पहाड़ों और हरियाली के समन्दर के बीच एक ऊँचे पहाड़ पर स्थित श्रृंगी ऋषि का मन्दिर और धूँणी गुफा लोक आस्था का केन्द्र रही है।

श्रृंगी ऋषि का तपस्या स्थल

इस स्थल पर प्राचीनकाल से श्रृंग एवं श्रृंगी नामक दो पर्वतीय जंगल हैं जहाँ श्रृंग ऋषि एवं उनकी पत्नी शान्ता ( मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की बहन )  ने धूँणी स्थापित कर कठोर तपस्या की। भक्तों का कहना है कि  इन दोनों पहाड़ों पर अपने आप दीवाली पर दीये और होली पर होलिका दहन दिखता है तथा दोनों पहाड़ धनतेरस से दीवाली के बीच के दिनों में पल भर के लिए जुड़े दिखते हैं।

इस पुरातन धूंणी के प्रति गहरी आस्था रखने वाले भक्त श्री शंकरलाल तिवाड़ी बताते हैं कि उन्होंने ये नज़ारे अपनी आँखों से देखे हैं तथा श्रृंगी ऋषि के दर्शन भी किए हैं। इसके बाद से ही उन्होंने मन्दिर निर्माण का संकल्प लिया और जनसहयोग से धाम को विकसित किया।

मन्दिर की नियमित सेवा-पूजा के साथ ही पं. श्री शंकरलाल तिवारी ने पास ही श्रृंगी ऋषि भवन के रूप में अपना साधना स्थल बना रखा है जहाँ वैदिक और पौराणिक अनुष्ठान का दौर नियमित रूप से बना रहता है।  वे जड़ी-बूटियों और पहाड़ी औषधियों के भी अच्छे जानकार हैं।

इस मन्दिर में मूर्ति प्रतिष्ठा महोत्सव नवम्बर 2009 में धूमधाम से हुआ। मुख्य मन्दिर में देवी गायत्री, श्रृंगी ऋषि और शान्ता देवी की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। इसके बाद यहाँ भक्तों का आवागमन बढ़ा है। मन्दिर के पास ही विशालकाय चट्टानों के बीच श्रंगी ऋषि की सदियों पुरानी चमत्कारिक धूँणी है जिसके दर्शनों का बड़ा महत्व है। सिखवाल ब्राह्मण समाज सहित सभी वर्गों के भक्तों के लिए यह आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

वंश वृद्धि का वरदान बंटता है यहाँ

मान्यता है कि श्रृंगी ऋषि की इस धूंणी पर यों तो सभी प्रकार की मन्नतें पूरी होती हैं किन्तु खासकर संतान प्राप्ति के दम्पत्ति यहाँ आकर इच्छित संतान प्राप्ति का वरदान पाते हैं। पुराने समय से यह लोक मान्यता चली आ रही है कि श्रृंग और श्रृंगी पर्वतों की परिक्रमा करने से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पर्वत शिखर पर यदा-कदा विशाल नागराज के भी दर्शन होते हैं। पहाड़ पर ही नागराज की बड़ी प्रतिमा भी स्थापित की हुई है।

विकास के लिए 3 करोड़ की योजना

पुजारी श्री शंकरलाल बताते हैं कि श्रृंगी धाम के लिए तीन करोड़ की योजना बनाई है जिसमें 20 कक्षों की धर्मशाला एवं विशाल सत्संग भवन, यज्ञकुण्ड, जल मन्दिर, परिक्रमा स्थल, मुख्य द्वार, कबूतर खाना, जंगली वन्य जीवों के लिए जल कुण्ड, श्रावण झूले, लिफ्ट आदि के काम शामिल हैं।

भक्तों द्वारा पर्वत शिखर पर स्थापित श्रृंगी ऋषि मन्दिर तक पहुंच को सुगम बनाया गया है, शीतल जल की प्याऊ व विश्राम स्थल है तथा मनोरंजन के लिए झूले भी लगे हुए हैं।

प्रकृति पूजा हो रही साकार

इस धाम के विकास एवं संरक्षण के प्रति पुजारी एवं श्रृंगी ऋषि के अनन्य भक्त-साधक श्री शंकरलाल तिवाड़ी ने अपना जीवन समर्पित कर रखा है। उन्होंने पहाड़ पर ही जड़ी-बूटियों सहित औषधीय एवं पौराणिक महत्व के पवित्र वृक्षों की नर्सरी स्थापित की हुई है जिससे पूरा परिवेश अत्यन्त मनमोहक हो उठा है। राजसमन्द का यह धाम श्रृंगी ऋषि के अनुयायियों एवं भक्तों में दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। आने वाले समय में यह श्रद्धा, भक्ति और पर्यटन के धाम के रूप में निखर कर सामने आएगा।

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