गुरुवार, 4 जनवरी 2018

सिद्धों का डेरा - साधकों का बसेरा ,गुप्त साधनाओं का जागृत धाम उदासीन धूँणी - डॉ. दीपक आचार्य

राजसमन्द परिक्रमा -
धर्म धामों से भरे भारतवर्ष में हर क्षेत्र में लोक श्रद्धा के प्राचीन आस्था धाम विद्यमान हैं जिनके प्रति स्थानीयों से लेकर दूर-दूर तक भक्तों की भावनाएं जुड़ी रही हैं। प्रभु श्रीनाथजी की नगरी श्रीनाथद्वारा भी धर्मधामों का गढ़ रहा है जहाँ खूब सारे श्रद्धास्थल मौजूद हैं और इनके प्रति धर्मावलम्बियों की गहरी आस्था रही है।

इन्हीं में एक है नाथद्वारा शहर के कोठारिया मोड की पहाड़ी पर अवस्थित उदासीन धूंणी धाम। सिद्ध महात्माओं ने नाथद्वारा में धूंणी स्थापित कर इसे जागृत किया। यह परंपरा प्रभुश्रीनाथजी के नाथद्वारा आगमन से पूर्व की है तथा पहले यह धूँणी उसी सिंहाड़ क्षेत्र में थी जहां आज श्रीनाथजी बिराजे हैं।

भक्तों को मिलता है दिली सुकून

यहीं पर दक्षिणमुखी हनुमान की प्राचीन मूर्ति है। जिसके बारे में कहा जाता है कि यह बहुत ही जागृत एवं चमत्कारिक है। मनोकामना पूर्ति औ संकट निवारण करने वाले बजरंगबली के प्रति भक्तों की अगाध आस्था है। पुराना पीपल पूजनीय है वहीं दूसरी ओर गजारूढ़ शनिदेव की मूर्ति है।

शनि की बाधाओं और पनौती से प्रभावित लोगों के लिए यह खास सुकूनदायी है जहाँ आकर भक्तजन हनुमानजी से शनि के प्रकोप के निवारण की प्रार्थना करते हैं और शनि मूर्ति पर तेल से अभिषेक करते हैं व तेल के दीपक प्रज्वलित कर शनि महाराज को प्रसन्न करते हैं। इसके अलावा भक्तगण काले पदार्थों का दान करते हैं और पीपल की पूजा कर दीप दान करते हैं।

शनि प्रभावितों को मिलता है सुकून

शनि की ढैया और साढ़े साती उतरने के समय यहाँ भक्तों का दिन-रात जमघट लगा रहता है और शनि प्रभावित लोग रात्रि जागरण एवं भजन-कीर्तन करते हैं तथा अगले दिन प्रभात में स्नान-ध्यान और शनि ग्रह के दर्शन-पूजन करने के बाद अपने घर लौटते हैं।

सिद्धों की समाधियाँ

उदासीन धूँणी पर करीब 400 साल से सिद्धों की परंपरा रही है जिनके चमत्कार सुनाते हुए भक्तजन आज भी रोमांचित हो उठते हैं। बाबा सेवादास के बारे में कहा जाता है कि सुक्खा माली उनका परम भक्त था जिसकी मृत्यु का समाचार पाकर वे उसके घर गए और जैसे ही पानी के छींटे उसके मुँह पर मारे, वह जीवित हो गया। इसके कुछ समय बाद बाबा सेवादास ने जीवित समाधि ले ली।

दिव्य और दैवीय प्रभाव

इस जीवित समाधि के बारे में कहा जाता है कि यह चमत्कारिक है तथा श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करती है। यहाँ आने वाले भक्तों को कई बार बाबा सेवादास दिव्य रूप में दर्शन प्रदान कर चुके हैं। भक्तों का यह भी मानना है कि यहाँ अक्सर सिद्धों का दिव्य रूप में सूक्ष्म अनुभव भी होता है।  आश्रम परिसर के पहाड़ में एकान्तिक साधना के लिए छोटी-छोटी गुफाएं हैं जिनमें जप-तप और ध्यान से सिद्धि प्राप्ति जल्दी होती है।

सिद्धियां पाना सहज है यहाँ

यहां जो भी संत रह चुके हैं वे उदासीन सम्प्रदाय के आदि प्रवर्तक आचार्य बाबा श्रीचन्द की परंपराओं का निर्वाह करते रहे हैं। कई साधक ऎसे हैं जो बाबा सेवादास की समाधि और धूंणी के सान्निध्य में साधना करते हुए सिद्धियाँ पाने का अनुभव करते हैं और जगत कल्याण में उपयोग करते हैं।

धूंणी परिसर में इनके अलावा बाबा जगजीवनदास, नाथजी, मंगलदास आदि की समाधियाँ हैं। यहां रह चुके बाबा निर्मलदास ने इस धाम को और अधिक विकसित किया। उन्हीं के समय किसी कलाकार ने गणपतिजी और बाबा श्रीचन्द की बड़ी मूर्तियाँ बनाई हैं। रियासत काल में भी इस धूंणी व यहां के संतों को विशेष महत्व प्राप्त था। श्रीनाथजी मन्दिर मण्डल की ओर से धूंणी के संत-महात्माओं के लिए भोजनादि का विशेष प्रबन्ध भी रहा है।

उदासीन धूँणी आश्रम के वर्तमान महंत बाबा रामदास बताते हैं कि रियासती काल में धूंणी के लिए पाल के तालाब के समीप पाल की पहाड़ी (बांधड़िया मगरा) पर स्थान दिया गया। बाबा रामदास भजनानन्दी भी हैं और अच्छे सिद्ध साधक भी। वे कहते हैं कि सिद्धों की इस धूंणी के दर्शन और भभूत ही कई सारी व्याधियों और समस्याओं के निवारण में मददगार है।

हालांकि इस धूंणी और इससे जुड़ी सिद्धों की परंपराओं के बारे में स्थानीय निवासी कम ही जानते हैं किन्तु इन सिद्धों का प्रभाव देख चुके भक्त गुरुपूर्णिमा को होने वाले उत्सव सहित साल में दो-चार बार इस धूंणी पर आकर श्रद्धा अभिव्यक्त करना नहीं भूलते। उदासीन धूँणी से जुड़े हुए भक्त धूंणी और यहाँ तपस्या कर चुके सिद्धों के चमत्कारों की कहानियां सुनाते हुए श्रद्धा के सागर में गोते लगाना नहीं भूलते।

मंगलवार और शनिवार को हनुमानजी व शनि भगवान के दर्शन-पूजन के लिए भक्तों का आना-जाना यहाँ लगा ही रहता है। उदासीन धूँणी के महन्त बाबा रामदास इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए प्रयासरत


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