डॉ. दीपक आचार्य
अरावली पर्वत माला प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ श्रद्धा के मनोरम पर्वत और झरनों के साथ नदी-नालों का दिग्दर्शन भी कराती है। इस पर्वतमाला की गोद में जगह-जगह शिव-शक्ति के ऎसे-ऎसे धाम हैं जो सदियों से जनास्था से खिलखिलाते प्रपातों का दिग्दर्शन कराते रहे है।
इन्हीं में एक है क्षेमंकरी माती जी का मंदिर, जिसे स्थानीय भावा में खीमज माता नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। अरावली पर्वतश्रृंखला के आँचल में दुर्गम घाटियों व पहाड़ी रास्तों में राजसमन्द जिले की सीमा पर दिवेर नाल में नदी के तट पर स्थित खीमज माता का मन्दिर श्रद्धा-भक्ति, नैसर्गिक रमणीयता व पर्यटन की त्रिवेणी बहा रहा है।
ख़ासकर यह सोलंकी गोत्र के लोगाें के लिए अनन्य आस्था का धाम है क्योंकि क्षेमंकरी मैया (खीमज माता) सोलंकी गोत्र की कुलदेवी मानी जाती हैं। यही कारण है कि सोलंकी गोत्र व वंश के लोग इस धर्म धाम के विकास के लिए समर्पित हैं।
क्षेमंकरी माता का यह स्थान सदियों पुराना है। लोकश्रद्धा की केन्द्र खीमज माता का पुराना स्थान उसी जगह यथावत रखते हुए उसके ठीक सामने नया मन्दिर बनाया गया है इसमें देवी क्षेमंकरी (खीमज माता) की सिंहारूढ़ मूर्ति के साथ ही दांयी ओर कालाजी भैरव व गणेश तथा बांयी ओर गोराजी भैरव की मूर्तियाँ हैं।
निज मन्दिर के एक आलीये में अखण्ड दीप स्थापित है। पुराने मूल मन्दिर में खीमज माता की सदियों पुरानी मूर्ति के आस-पास ग्यारह छोटी-छोटी अन्य मूर्तियाँ भी हैं। भक्तों की ओर से यहाँ यात्रियों व दर्शनार्थियों की सुख-सुविधा के लिए बरामदे व धर्मशाला भी बनाई गई है। मन्दिर परिसर में अशोक, नीम, पीपल आदि वृक्षों के साथ ही मेहन्दी व फूलदार पौधे भी काफी संख्या में हैं।
क्षेमंकरी माताजी के मंदिर पर दूर-दूर से भक्त आते हैं व देवी मैया के प्रति अगाध श्रद्धा व्यक्त करते हैं। नवरात्रि में विशेष पूजा-अनुष्ठान होते हैं, जबकि साल में एक बार अक्षय तृतीया के बाद वैशाख शुक्ल पंचमी व षष्ठी को मेला भी भरता है जिसमें राजसमन्द व पाली जिलों के श्रद्धालुओं के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों से सोलंकी गोत्र वंशीय परिवार हिस्सा लेते हैं।
प्रकृति के बीच बसी क्षेमंकरी मैया का यह धाम असीम आत्मतोष देने वाला वह धाम है जिसे कोई भुला नहीं पाता।खीमज माता सच्चे भक्तों की कामना पूरी करने का वरदान लुटाने वाली हैं। मैया के दरबार में जो आता है वह असीम आनंद और सुकून के साथ लौटता है।
अरावली पर्वत माला प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ श्रद्धा के मनोरम पर्वत और झरनों के साथ नदी-नालों का दिग्दर्शन भी कराती है। इस पर्वतमाला की गोद में जगह-जगह शिव-शक्ति के ऎसे-ऎसे धाम हैं जो सदियों से जनास्था से खिलखिलाते प्रपातों का दिग्दर्शन कराते रहे है।
इन्हीं में एक है क्षेमंकरी माती जी का मंदिर, जिसे स्थानीय भावा में खीमज माता नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। अरावली पर्वतश्रृंखला के आँचल में दुर्गम घाटियों व पहाड़ी रास्तों में राजसमन्द जिले की सीमा पर दिवेर नाल में नदी के तट पर स्थित खीमज माता का मन्दिर श्रद्धा-भक्ति, नैसर्गिक रमणीयता व पर्यटन की त्रिवेणी बहा रहा है।
ख़ासकर यह सोलंकी गोत्र के लोगाें के लिए अनन्य आस्था का धाम है क्योंकि क्षेमंकरी मैया (खीमज माता) सोलंकी गोत्र की कुलदेवी मानी जाती हैं। यही कारण है कि सोलंकी गोत्र व वंश के लोग इस धर्म धाम के विकास के लिए समर्पित हैं।
क्षेमंकरी माता का यह स्थान सदियों पुराना है। लोकश्रद्धा की केन्द्र खीमज माता का पुराना स्थान उसी जगह यथावत रखते हुए उसके ठीक सामने नया मन्दिर बनाया गया है इसमें देवी क्षेमंकरी (खीमज माता) की सिंहारूढ़ मूर्ति के साथ ही दांयी ओर कालाजी भैरव व गणेश तथा बांयी ओर गोराजी भैरव की मूर्तियाँ हैं।
निज मन्दिर के एक आलीये में अखण्ड दीप स्थापित है। पुराने मूल मन्दिर में खीमज माता की सदियों पुरानी मूर्ति के आस-पास ग्यारह छोटी-छोटी अन्य मूर्तियाँ भी हैं। भक्तों की ओर से यहाँ यात्रियों व दर्शनार्थियों की सुख-सुविधा के लिए बरामदे व धर्मशाला भी बनाई गई है। मन्दिर परिसर में अशोक, नीम, पीपल आदि वृक्षों के साथ ही मेहन्दी व फूलदार पौधे भी काफी संख्या में हैं।
क्षेमंकरी माताजी के मंदिर पर दूर-दूर से भक्त आते हैं व देवी मैया के प्रति अगाध श्रद्धा व्यक्त करते हैं। नवरात्रि में विशेष पूजा-अनुष्ठान होते हैं, जबकि साल में एक बार अक्षय तृतीया के बाद वैशाख शुक्ल पंचमी व षष्ठी को मेला भी भरता है जिसमें राजसमन्द व पाली जिलों के श्रद्धालुओं के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों से सोलंकी गोत्र वंशीय परिवार हिस्सा लेते हैं।
प्रकृति के बीच बसी क्षेमंकरी मैया का यह धाम असीम आत्मतोष देने वाला वह धाम है जिसे कोई भुला नहीं पाता।खीमज माता सच्चे भक्तों की कामना पूरी करने का वरदान लुटाने वाली हैं। मैया के दरबार में जो आता है वह असीम आनंद और सुकून के साथ लौटता है।
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