महाशिवरात्रि का पर्व 13फरवरी मंगलवार को पड़ रहा है। वस्तुतः
शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार निशीथ व्यापिनी फाल्गुन चतुर्दर्शी पर
भगवान शिव की आराधना का एक अपना महत्व है। इस तिथि के स्वामी भगवान शिव
माने गए हैं। अर्थात भगवान शिव की तिथि ही चतुर्दशी मानी जाती है। इस बार
13 फरवरी ,मंगलवार को फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी पूर्ण रुप से निशीथ व्यापिनी
है जबकि 14 तारीख को मात्र आंशिक रुप से ही है। अतः 13 तारीख को ही
शिवरात्रि मनाना शास्त्र सम्मत रहेगा और फलदायी सिद्ध होगा।
ज्योतिषीय दृष्टि से इस प्रकार निशीथकाल अर्थात शुभ समय 13 फरवरी की अर्द्धरात्रि , 12 बजकर 09 मिनट से आरंभ होकर 13 बजकर 01 मिनट तक ही रहेगा। कुल मिला कर यह समय 50 मिनट तक ही रहेगा।
अन्ततः 14 फरवरी को शिवरात्रि का पारण होगा जो सुबह 7 बजकर
04 मिनट से दोपहर 15 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। इसके अतिरिक्त शास्त्रानुसार
यदि शिरात्रि रविवार या मंगलवार को पड़े तो शिवयोग कहलाता है और यह संयोग और
महत्वपूर्ण हो जाता है। अतः धार्मिक दृष्टि से 13 फरवरी को ही शिवरात्रि
मनाने का लाभ रहेगा।
इस दिन काले तिलों सहित स्नान करके व व्रत रख के रात्रि में
भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन
अर्थात अमावस के दिन मिष्ठान्नादि सहित ब्राहम्णों तथा शारीरिक रुप से
अस्मर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महा
कल्याणकारी होता है और अश्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है।
इस दिन किए गए अनुष्ठानों , पूजा व व्रत का विशेष लाभ मिलता
है। इस दिन चंद्रमा क्षीण होगा और सृष्टि को ऊर्जा प्रदान करने में अक्षम
होगा। इसलिए अलौकिक शक्तियां प्राप्त करने का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय होता
है जब ऋद्धि- सिद्धि पा्रप्त होती है। इस रात भगवान शिव का विवाह हुआ था।
भारतीय जीवन में ऐसे लोक पर्व वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में
भले ही धूमिल हो रहे हों परंतु इनका वैज्ञानिक पक्ष आस्था के आगे उजागर हो
नहीं पाता। भारतीय आस्था में चाहे सूर्य ग्रहण हो या कुंभ का पर्व, दोनों
ही समान महत्व रखते हैं। शिव रात्रि एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है जो देश के
हर कोने में मनाया जाता है।
यह पर्व भगवान शिव एवं माता पार्वती के मिलन का महापर्व कहलाता है। इस व्रत से साधकों को इच्छित फल,धन, वैभव, सौभाग्य, सुख समृद्धि, आरोग्य, संतान आदि की प्राप्ति होती है।
यह पर्व भगवान शिव एवं माता पार्वती के मिलन का महापर्व कहलाता है। इस व्रत से साधकों को इच्छित फल,धन, वैभव, सौभाग्य, सुख समृद्धि, आरोग्य, संतान आदि की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान
शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रुप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में
इसी दिन प्रदोश के समय शिव तांडव करते हुए ब्रहाण्ड को तीसरे नेत्र की
ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसी लिए, इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि
कहा जाता है। काल के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष
महत्व है। एक मतानुसार इस दिन को शिव विवाह के रुप में भी मनाया जाता है।
ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्द्धरात्रि के समय
करोड़ों सूर्य के तेज के समान ज्योर्तिलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।
स्कंद पुराण के अनुसार - चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं परंतु शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं जाता। भगवान राम भी यह व्रत रख चुके हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार - चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं परंतु शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं जाता। भगवान राम भी यह व्रत रख चुके हैं।
व्रत की परंपरा.........
प्रातः काल स्नान से निवृत होकर एक वेदी पर ,कलश की स्थापना
कर गौरी शंकर की मूर्ति या चित्र रखें । कलश को जल से भर कर रोली, मौली ,
अक्षत, पान सुपारी ,लौंग, इलायची, चंदन, दूध,दही, घी, शहद, कमलगटटा्,,
धतूरा, विल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें और शिव की आरती पढ़ें । रात्रि
जागरण में शिव की चार आरती का विधान आवश्यक माना गया है। इस अवसर पर शिव
पुराण का पाठ भी कल्याणकारी कहा जाता है।
विशेष चेतावनी........
भगवान शंकर पर अर्पित किया गया नेैवेद्य , खाना निषिद्ध माना
गया है। त्रयोदशी के दिन एक समय आहार ग्रहण कर चतुर्दशी के दिन व्रत करना
चाहिए।
बेल पत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। बेल पत्र के तीनों
पत्ते पूरे हों ,टूटे न हों ।इसका चिकना भाग शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए।
नील कमल भगवान शिव का प्रिय पुष्प माना गया है। अन्य फूलों मे कनेर,आक,
धतूरा, अपराजिता,,चमेली, नाग केसर, गूलर आदि के फूल चढ़ाए जा सकते है।
जो
पुष्प वर्जित हैं वे हैं- कदंब,केवड़ा,केतकी।
फूल ताजे हों बासी नहीं ।
इस दिन काले वस्त्र न पहनें।
इसमें तिल का तेल प्रयोग न करें।
पूजा में अक्षत ही चढाएं।
पूजा में अक्षत ही चढाएं।
टूटे चावल न चढ़ाएं।
शिवलिंग पर नारियल ही चढ़ाएं, नारियल तोड़ कर नहीं यार उसका पानी नहीं ।
विभिन्न सामग्री से बने शिवलिंग का अलग महत्व.............
फूलों से बने शिवलिंग पूजन से भू- संपत्ति प्राप्त होती
है। अनाज से निर्मित शिवलिंग स्वास्थ्य एवं संतान प्रदायक है। गुड़ व अन्न
मिश्रित शिवलिंग पूजन से कृशि संबंधित समस्याएं दूर रहती हैं। चांदी से
निर्मित शिवलिंग धन- धान्य बढ़ाता है। स्फटिक के वाले से अभीष्ट फल
प्राप्ति होती है। पारद शिवलिंग अत्यंत महत्वपूर्ण है जो सर्व कामप्रद,
मोक्षप्रद, शिवस्वरुप बनाने वाला, समसत पापों का नाश करने वाला माना गया
है।
शिवरात्रि पर करें कालसर्प या राहू योग का निवारण.............
चांदीे के नाग-नागिन का जोड़ा , हलवा,सरसों का तेल, काला सफेद
कंबल शिवलिंग पर अर्पित करें । महामृत्युंज्य मंत्र की कम से कम ,एक माला
-.108 मंत्र अवश्य पढ़ें।
ः मुख्य मंत्र.........
ऽ ओम् नमः शिवाय
ऽ ओम् नमो वासुदेवाय नम
ऽ ओम् राहुवे नमः
ऽ महामृत्युंज्य मंत्र-
ओम् त्रयंम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनं!
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्!!
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्!!
माह शिवरात्रि पर अन्य मंत्र आप विभिन्न समस्याओं के लिए कर सकते हैं.............
आय वृद्धि : शं हृीं शं !!
विवाहः ओम् ऐं हृी शिव गौरी मव हृीं ऐं ओम् !
शत्रुः ओम् मं शिव स्वरुपाय फट् !
रोगः ओम् ह्ौं सदा शिवाय रोग मुक्ताय ह्ौं फट् !
साढ़े सातीः हृीं ओम् नमः शिवाय हृीं !
मुकदमाः ओम् क्रीं नमः शिवाय क्रीं !
परीक्षाः ओम् ऐं गे ऐं ओम् !
बिगड़ी संतानः ओम् गं ऐं ओम् नमः शिवाय ओम् !
विदेश यात्राः ओम् अनंग वल्लभाये विदेश गमनाय
कार्यसिद्धयर्थे नमः!
सुख सम्पदाः ओम् हृौं शिवाय शिवपराय फट्!
शत्रु विजयः ओम् जूं सः पालय पालय सः जूं ओम्!
रोजगार प्राप्ति: ओम् शं हृीं शं हृीं शं हृीं शं हृीं ओम्!
प्रेम प्राप्तिः ओम् हृीं ग्लौं अमुकं सम्मोहय सम्मोहय फट्!
शिवरात्रि पर राशि अनुसार कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं........................
1. मेष -शिवलिंग पर कच्चा दूध एवं दही अर्पित करें। साथ ही, धतूरा चढ़ाएं। कर्पूर जलाकर भगवान की आरती करें।
2. वृषभ -भगवान शिव को गन्ने के रस से स्नान करवाएं। इसके बाद
मोगरे का ईत्र शिवलिंग पर अर्पित करें। अंत में भगवान को मिठाई का भोग
लगाएं एवं आरती करें।
3. मिथुन -स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करें । यदि स्फटिक का
शिवलिंग उपलब्ध न हो तो किसी अन्य शिवलिंग का पूजन किया जा सकता है। इस दिन
लाल गुलाल, कुमकुम, चंदन, ईत्र आदि से शिवलिंग का अभिषेक कर सकते हैं।
4. कर्क -अष्टगंध एवं चंदन से शिवजी का अभिषेक करें। आटे से बनी रोटी का भोग लगाकर शिवलिंग का पूजन करें। बैर अर्पित करें।
5.सिंह -फलों के रस के साथ शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। साथ ही, शिवलिंग पर आंकड़े के पुष्प अर्पित कर मीठा भोग लगाना चाहिए।
6. कन्या -बैर, धतूरा, भांग और आंकड़े के फूल अर्पित करें।
इसके साथ बिल्व पत्र पर रखकर नैवेद्य अर्पित करें। कर्पूर मिश्रित जल से
अभिषेक कराएं।
7. तुला -जल में तरह-तरह फूल डालकर, उस जल से शिवजी का अभिषेक
करें। बिल्व पत्र, मोगरा, गुलाब, चावल, चंदन आदि भोलेनाथ को अर्पित करें।
अंत में आरती करें।
8. वृश्चिक -शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। शहद,
घी से स्नान कराने के पश्चात पुन: पवित्र जल से स्नान कराएं एवं पूजन कर
आरती करें।
9. धनु -सूखे मेवे का भोग लगाएं। बिल्व पत्र, गुलाब आदि अर्पित करके आरती करें।
10. मकर -गेंहू से विधिवत पूजन करें। पूजन-आरती पूर्ण होने के
बाद गेंहू का दान कर दें। इस उपाय से आपकी सभी समस्याएं समाप्त हो सकती
हैं।
11. कुंभ -सफेद और काले तिल एक साथ मिलाकर किसी ऐसे शिवलिंग
पर चढाएं। शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाने से पहले जल अर्पित करें। इसके बाद
काले-सफेद तिल अर्पित करें, पूजन के आद आरती करें।
12. मीन -पीपल के नीचे बैठकर शिवलिंग का पूजन करें। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करते हुए बिल्व पत्र चढ़ाएं तथा आरती करें।
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