शिमला – ग्रामीण डाक सेवकों की समस्त युनियनों के आहवान पर सम्पूर्ण भारत मे 14 मइ्र से लगातार हडताल चल रही है। जिले मे 20 वें दिन भी हडताल के कारण 400 से अधिक ग्रामीण डाक सेवक हडताल पर रहे। हडताल के कारण ग्रामीण क्षेत्रों मे डाक की आवाजाही ठपप रही। गांवो मे साधारण पत्रो, रजिस्टर्ड डाक, स्पीड पोस्ट, पार्सल, कॉल लेटर आदि का वितरण नही हो सका है। और कब होगा यह भी तय नही है। समस्त ग्रामीण डाक सेवकों के हडताल पर उतरने के कारण पूरी डाक व्यवस्था चरमरा गयी है। ग्रामीण डाक सेवको को 3 घण्टे का वेतन दिया जाता है जबकि कार्य 12 घण्टे लिया जाता है। ग्रामीण डाक सेवको के वेतन भत्तो मे सुधार हेतु कमलेशचन्द्रा कमेटी का गठन किया था उसने अपनी रिपोंर्ट 18 माह पूर्व नवम्बर 2016 मे दे दी थी लेकिन उसको आज तक भी लागू नही किया गया तथा आजादी के 71 वर्ष बाद भी ग्रामीण डाक सेवको का विभागीयकरण नही किया तथा 65 वर्ष की सेवा के बाद भी पेन्शन देना चालू नही किया। इसी को लागू करवाने हेतु हडताल का सहारा लेना पडा है। आज इसके लिए जिला मुख्यालय, तहसिल मुख्यालयो व अनेक डाकघरो के सामने धरना देकर प्रदर्शन किया गया। जिला सचिव रामचन्द्र चाहर ने बताया कि पूरे राष्ट्र मे भारतीय अतिरिक्त विभागीय डाक कर्मचारी बीइडीइयू भारतीय डाक कर्मचारी संघ, भारतीय मजदूर संघ, नेशनल डाक कर्मचारी संघ व ग्रामीण डाक सेवक संघ के संयुक्त आव्हान पर दिनांक 14 मई 2018 से अनिश्चित कालीन हडताल चल रही है। जिसमे मुख्य मांग साँतवा वेतन आयोग अर्थात कमलेशचन्द्रा कमेटी रिर्पोट को लागू करवाना तथा ग्रामीण डाक सेवको का विभागीय करण जैसी सुविधा लागू करवाना है। डाक विभाग ने सातवां वेतन लागू करने हेतु 24 नवम्बर 2016 को कमलेशचन्द्रा कमेटी बनायी थी जिसने अपनी रिर्पोट नवम्बर 2017 मे सरकार को सौंप दी थी जिसको 7 माह गुजर जाने के बाद भी लागू नही किया गया। ग्रामीण डाक सेवक आज भी 2006 का वेतन पा रहे है। नया वेतनमान लागू करवाने हेतु पूरे देश के ग्रामीण डाक सेवक 20 दिन से हडताल पर है। पूरे देश मे 1 लाख 55 हजार शाखा डाकघर गाँवो मे स्थित है तथा इनमे करीब 2 लाख 77 हजार ग्रामीण डाक सेवक कार्यरत है जिन्हे वर्तमान मे मात्र 6000 से 12000 रू मासिक वेतन दिया जा रहा है। इसके अलावा पेन्शन, छूटटी, चिकित्सा भत्ता, पढाई भत्ता जैसी कोई भी सुविधा इन्हे नही दी जा रही है। ये ग्रामीण डाक सेवक देश की आजादी के 71 वर्ष बाद भी गुलामी की जिन्दगी जी रहे है। डाक विभाग कहने को तो इनसे 3 से 5 घण्टे की डयूटी लेता है लेकिन इन्हे कार्य 12-14 घण्टे करना पडता है। क्योंकि शाखा डाकपाल को डाकघर के अलावा डाक वितरण व उपडाकघर से डाक का आदान-प्रदान भी करना पडता है वो भी 5 किमी से 30 किमी दूर तक। जिसका अलग से कोई मानदेय नही दिया जाता है। उपडाकघर मे आने जाने मे ही 3 से 5 घण्टे लग जाते है बाकि का समय तो पूरा पडा रहता है। कहने को तो डाक विभाग के कर्मचारी केन्द्र सरकार के कर्मचारी है लेकिन इनकी दशा आंगनबाडी कार्यकर्ता से भी दयनीय है। डाक विभाग मे 65 वर्ष की उम्र तक सेवा करने के बाद भी इनको मात्र 1 लाख 20 हजार सेवा विच्छेद भत्ता देकर घर भेज दिया जाता है। अर्थात 40 वर्ष की लम्बी सेवा के बाद भी यहं कर्मचारी बिना विभाग का कर्मचारी कहलाता है। जबकि अन्य विभागो मे 240 दिन कार्य करने पर भी कर्मचारी का दर्जा पा लेता है। आज ग्रुप डी व चपरासी का वेतन भी इनके वेतन से 4 गुणा अधिक है। 1836 मे डाक विभाग की स्थापना की गयी थी। 182 वर्ष बाद भी डाक विभाग मे ग्रामीण डाक सेवक बंधुआ मजदूर जैसी जिन्दगी जी रहे है। भारतीय अतिरिक्त विभागीय डाक कर्मचारी युनियन के राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष रामानन्द शर्मा ने बताया कि डाक विभाग मे पहली बार देश की सभी पाँचो युनियन मिलकर एक बैनर के नीचे हडताल कर रही है तथा सभी की एक ही मांग है कमेटी की रिर्पोट लागू करवाने की। देश मे आज 20 वें दिन 90 प्रतिशत ग्रामीण डाक सेवक हडताल पर है तथा ग्रामीण क्षेत्रो मे डाक की आवाजाही ठप्प है तथा कॉल लेटर जैसे महत्वपूर्ण पत्रो का भी वितरण नही हो रहा है तथा मोदी सरकार के 20 दिन बाद भी कानो पर जॅूं तक नही रेंग रही है। राजस्थान प्रदेश मे भी 90 प्रतिशत डाक कर्मी हडताल पर है।
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