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मेघवाल के फिर तीखे तेवर, नई सरकार को ही असंमझस में डाला

खबर - प्रशांत गौड़ 
सत्रआहुत करने का अधिकार केवल स्पीकर को- मेघवाल 
 सरकार अपनी गलती माने और विधानसभा अध्यक्ष से करें सलाह मश्विरा
अनुभव मुख्यमंत्री  और मंत्री, फिर ऐसी गलती कैसें
मेरी मंजूरी बिना नहीं बुला सकते है सत्र
जयपुर। राजस्थान विधानसभा में पिछली भाजपा सरकार के समय में कई बार ऐसे मौके आए जब विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल के आदेश चर्चा का विषय बन गए। अब प्रदेश में कांग्रेस की नवगठित सरकार को निर्वतमान विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने असमझंस में डाल दिया है। उन्होंने शार्टटम नोटिस पर विधानसभा सत्र 15 जनवरी से आहुत करने, विधानसभा अध्यक्ष से विचार विमर्श नहीं करने और उनकी मंजूरी लिए बिना पूरी कार्यवाही आहुत करने को अब संवाधानिक प्रक्रिया और नियमों में उलझा दिया है ऐसे में 15 जनवरी को विधानसभा का पहला सत्र आहुत होना मुश्किल दिख रहा है।
विधानस ाा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने कहा कि उनकी बिना अनुमति के सत्र आहुत करने की प्रक्रिया नहीं है। विधानसभा के लिए बनी नियमावली और पर पराओं के अनुसार विधानसभा सत्र आहुत करने के कुछ नियम है जिनकी पालना होनी जरूरी है।
धारीवाल का आया था फोन
विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने कहा कि जब उन्होंने पूरी प्रक्रिया को लेकर बुधवार शाम राज्यपाल से मुलाकात की तो उनके पास में विभागीय मंत्री शांति धारीवाल का फोन आया था जिन्होंने कहा कि यह क्या मामला कर रखा है तब उन्होंने कहा कि दिल्ली से आकर बात करता हुं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में धारीवाल मिलेंगे तो उनसे बात करूंगा।
विशेष परिस्थितियों में बुलाए जाने का अधिकार
इस संबंध में स्पीकर कैलाश मेघवाल ने मीडिया से कहा कि ऐसे सत्र केवल विशेष परिस्थितियों में बुलाया जा सकता है। उनके कार्यकाल में भी संवाधानिक संशोधन से जुड़े एक विधेयक के संबंधमें शार्टटर्म पर सत्र बुलाया गया था लेकिन अब कोई ऐसी परिस्थिति उनके संदर्भ में नहीं लाई गई है। ऐसे में उनकी अनुमति लिए बिना सत्र आहुत नहीं हो सकता है। इस संबंध में सरकार अपनी गलती माने और स्पीकर से विचार-विमर्श कर सत्र आहुत करें।
मेघवाल ने बताए यह नियम
-सत्र आहुत करने से पहले स्पीकर से विचार विमर्श जरूरी
-शार्टटर्म सत्र बुलाने का पुख्ता कारण बताया जाना जरूरी 
-14 दिन विधायकों का प्रश्न पूछने लगते है
-21 दिन का समय संसदीय नियमों अनुसार तय होता है
-10 दिन में सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता  नहीं हो सकती है
-विधानसभा अध्यक्षकी सहमति के बाद राज्यपाल को प्रतिवेदन भेजा जाए
-नियामों की पालना करना स्पीकर का कत्वर्य हो और उन्होंने वो ही किया है।

विधानस ाा के इतिहास में पहली बार 
विधानसभा अध्यक्ष अपने बयानोंऔर कार्यप्रणाली के लिए चर्चा का विषय रहे है। पिछली विधानसभामें कई बार भी विधायकों को उनके इस अंदाज से परिचित होना पड़ा है हालांकि पूरा मामला अब उसी तरह नजर आ रहा है जब सुप्रीम कोर्ट के जज ने सरकारके खिलाफ ही प्रेस कान्फेंस की थी अब राजस्थान में पहली बार विधानसभा अध्यक्ष ने सरकार के सामने आकर उनको नियमोंके तहत मीडिया में आकर घेरा है।

 उसके मुंह में घी शक्कर 
विधानसभा अध्यक्ष से पत्रकारों ने जब सवाल किए तो उन्होंने अपने अंदा में उनके जवाब दिए। एक पत्रकार ने पूछा कि आपभी अब विधायकों के साथ बैंठेगे तो आप को भी विधानसभा अध्यक्ष केआदेश मानने पड़ेगे आपके कई आदेश पूर्व विधानसभा में सदस्यों ने विरोध किया उन्होंने कहा कि जब वह बैंठेगे तब देंखेगे वहीं एक पत्रकार ने पूछा कि आप नेता प्रतिपक्ष बनने जा रहे है उन्होंने कहा कि जल्दी से घी -शक्कर इसको लाकर खिलाओ।