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पेरेग्रिन फॉल्कन क्यों है फतेहपुर की इस हवेली में

शोध 
डॉ दाऊलाल बोहरा 
नवलगढ़ -शेखावाटी के भित्ति चित्रों का इतिहास को देंखे तो 150 से 300 वर्ष के अंतराल का है और हवेलियों में पशु पक्षी देवी देवता अपने पूर्वजों और कलात्मक चित्रकारी तथा देश विदेश में नए विकास को प्रदर्शित करना वही  फ्रेस्को पेंटिंग के माध्यम से अपनी आर्थिक सम्पन्नता दिखाना उस समय का शौक कही जा सकती है।   शेखावाटी क्षेत्र में चूरू ,फतेहपुर, मंडावा नवलगढ़ मुकुंदगढ़ ,डूंडलोद इत्यादि जगहों पर पशु पक्षी की चित्रकारिता सामान्य लगती है   लेकिन कुछ हवेलियों में  200 वर्ष पहले जब इनका निर्माण हुआ होगा तो  इनके संरक्षण सम्बन्धी बात को ध्यान में रखकर चित्रकारिता की गयी जिसमे एक उदहारण फतेहपुर की हवेली है का जिसके मुख्य द्वार पर फॉल्कनर एक मंगोलियन शिकारी के हाथ पर बैठा है।  इस शिकारी के हाथ पर जो पक्षी बैठा है वो है पेरेग्रिन फॉल्कन।  यह पुरे जंतु जगत में सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी है जिसकी गति 389  किलोमीटर प्रति घंटा है। यह मुख्यतः ठन्डे और टुंड्रा प्रदेश में पाया जाता है।  जिसका भार 700 ग्राम से 1500 ग्राम तक होता है। पीछे की तरफ लम्बी पूंछ , धब्बेदार पंख तथा नीले काले रंग  का पक्षी।  
विदेशों में इस पक्षी का उपयोग पुरानी इमारतों से कबूतरों से होने वाले नुकसान से बचाने  के लिए शिकारी पक्षी के रूप में तैनात किया जाता था ।  विश्व में DDT  को प्रतिबंधित इसी पक्षी की कम होती संख्या के आधार पर कियागया था जो अमेरिका द्वारा 1999 में पूर्णतय प्रतिबंधित प्रजाति को बचाने के लिए एक सफल प्रयोग रहा। चूँकि यह फोटो फ्रेस्कों पेंटिंग में जो फतेहपुर की एक हवेली के मुख्य द्वार पर है।  उस हवेली की सभी पेंटिंग्स सुरक्षित आज भी देखि जा सकती है।  जो इस  पेरेग्रिन फॉल्कन का मुख्य कार्य हवेली तथा पेंटिंग के संरक्षण के रूप में सार्थक होता प्रतीत होता है। ऐसे ही चूरू में पाए जाने वाली एक ने हवेली के फ्रेस्को पेंटिंग में भी पक्षियों का जमकर उपयोग हुआ है।  लेकिन उस समय के मारवाड़ी सेठो की एक सोच को भी दाद देनी होगी की  पेरेग्रिन फॉल्कन का प्रयोग उस समय किया गया जिस समय सामान्य इंसान को इसकी कोई जानकारी भी नहीं थी।   वाकई ये बात शेखावाटी के सेठो के सोच के बारे में बताती है की किस तरह हमारी विरसत बचेगी।