खबर - प्रदीप कुमार सैनी
दातारामगढ़ -30 वर्षों तक दातारामगढ़ के सरपंच रहे पूर्व सरपंच सर्वोदय ही नेता गांधीवादी विचारक 88 वर्षीय रामेश्वर विद्यार्थी का निधन शुक्रवार 28 फरवरी को प्रातः 11:30 बजे हो गया। जिनकी अंतिम यात्रा मध्याह्न 3:00 बजे दांतारामगढ़ के बालीनाथ पुस्तकालय से निकाली गई जो कस्बे के प्रमुख मार्गों से होती हुई बस स्टैंड कोर्ट के पास श्मशान घाट पहुंची। इससे पूर्व उनके शव को दोपहर 2:00 बजे से 3:00 बजे तक बालीनाथ पुस्तकालय मुख्य बाजार पर रखा जहां उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कस्बे व आसपास के लोगों ने विद्यार्थियों को नम आंखों से विदाई दी इस मौके पर कस्बे के अलावा जयपुर में अन्य स्थानों से भी बड़ी संख्या में लोग उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे इस दौरान उनके शौक में दातारामगढ़ का बाजार भी बंद रहे । रामेश्वर विद्यार्थी जो पूरे राजस्थान में किसी परिचय का मोहताज नहीं रहे। सिद्धराज डढ्ढा, गोकुल भाई भट्ट व बिनोबा भावे के साथी रहे सर्वोदयी नेता रामेश्वर विद्यार्थी किसी राजनीति दल से नहीं जुड़े थे लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भैंरोसिंह शेखावत, हीरालाल शास्त्री व हरिदेव जोशी सरीखे उस जमानें के नेता उनकी बात को इतनी जवज्जो देते थे कि उनके सरपंच काल में कई मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव तक को वे दांतारामगढ़ लेकर आए और उनसे विकास के काम करवाए।
यह रहा जीवन का सफर
दांतारामगढ़ में जन्मे,मैट्रिक तक पढ़े,१९६० में वे दांतारामगढ़ ग्राम पंचायत के निर्विरोध सरपंच चुने गए।१९६५ में मतदान से वे सरपंच निर्वाचित हुए तथा १९८८ तक लगातार सरपंच रहे। 1992 में उन्हे भूदान बोर्ड का सचिव बनाया 2002 में इस पद से उन्होने स्तीफा दे दिया। उन्होने कुछ समय सर्वोदयी नेता के रूप मे काम भी किया बिनोबा भावे के साथ पदयात्राएं की। 31 अगस्त 1987 को जब प्रधानमंत्री राहते राजीव गांधी दांतारामगढ़ आए तो कलक्टर के मना करनें के बावजूद वे सडक़ पर माला लेकर खड़े हो गए तथा राजीव गांधी का माल्यार्पण कर गांव की समस्या के बारे में बताया। वे खादी व अनेक पत्रिकाओ में सम्पादक भी रहे। पत्रकार बनारसीदास चतुर्वेदी व माखनलाल चतुर्वेंदी से अच्छे सम्बध रहे। तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहाुदर शास्त्री जयपुर आए तो उनका साक्षात्कार लिया। सिन्धी पंचायत स्कूल जयपुर में फिल्म अभिनेता असरानी के गुरू रहे। असरानी को पांचवी क्लास में मारा थप्पड़ आज भी उन्हे याद है।
कोई उनके हाल चाल पूछने जाता तो वे अपने हाल की बजाय गांव के विकास की ही बात करते थे।
ईमानदारी की ऐसी मिसाल कि तीस साल सरपंच रहनें के बावजूद एक प्लाट तक अपने नाम करवाया। वे बताते है कि उनका सपना था कि गांव के अंतिम व्यक्ति को प्लाट मिलने के बाद ही वे स्वयं प्लाट लेगे। दस साल तक भूदान बोर्ड के सचिव रहे लोगो को खूब जमीने दी, बीकानेर में मुरबा बांटे लेकिन एक मुरबा भी अपने नाम नहीं करवाया। सादगी इतनी की करीब साठ साल पहले बहन की बिना दहेज के बहन की शादी की,खादी की एक साड़ी में बहन को विदा किया। स्वयं भी पूरे वस्त्र खादी के पहनते थे। रामेश्वर विद्यार्थी के निधन पर कस्बे वासियों की ओर से एक शोक सभा का आयोजन रविवार को दोपहर 3:00 बजे से बालीनाथ पुस्तकालय पर रखा गया है।
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