प्रत्येक वर्ष मकर सक्रांति संपूर्ण भारत में पूर्ण उत्साह और धार्मिक आस्था के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में यह पर्व मकर सक्रांति के पर्व के रूप में, पंजाब में लोहड़ी के नाम से जाना जाता है, उत्तराखंड के गढ़वाल में खिचड़ी सक्रांति के नाम से जाना जाता है, गुजरात में उत्तरायण के नाम से जाने जाते हैं, तमिलनाडु में पोंगल के नाम से जाना जाता है जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश एवम अन्य राज्यों में केवल सक्रांति के नाम से जाना जाता है।
इसी तरह पुरानी कथा और हमारी धार्मिक आस्था के अनुसार अलग-अलग तरीके और रिति रिवाज के साथ मकर सक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है यह त्यौहार जीवन के मंगल हेतु वैज्ञानिक पटल पर भी सहमति प्रदान करने वाले माने जाते हैं। प्रत्येक पुराने ग्रंथ और कथा में प्रकृति को सबसे ऊपर रखा गया है जो कि हमारे जीवन का एक अग्रज भाग होता है लेकिन बदलते वक्त ने तो पर्व के मनाने का स्वरूप एवम उसका आकार में सब कुछ बदलाव आ गया है।
एक वक्त था जब त्यौहार को मनाने का तरीका धर्म के अनुसार ज्ञान, दान और प्रेम के साथ मनाया जाता था मगर आज वर्तमान युग में स्वाद के अनुसार, फैशन, दिखावा और सुविधा के अनुसार त्यौहार को मनाया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप त्यौहार का मूल्य जिंदगी के भागम भाग दौड़ में अपना स्वरूप बदलता जा रहा है।
इस त्यौहार के दौरान पतंग उड़ाना एक आनंद के रूप में प्रतिद्वंद्वी के तौर पर विशेष रूप से लोकप्रिय खुशी से परिपूर्ण लोग रंगीन मिजाज या प्लास्टिक की पतंगों से आसमान भर देते हैं बसंत ऋतु की शुरुआत का जश्न मनाते हैं जो कि अच्छी बात है।
जैसे-जैसे आकाश में रंग और भी अधिक उज्जवल होते जाते हैं पक्षियों की चोटों की संख्या अधिक होती जाती है। पतंग उड़ाने का अनुभव चाहे जितना आनंददायक हो, रंगीन डोरी या मांझा जो कि हजारों मासूम पक्षियों के लिए घातक साबित होता है यह खुशियों भरा दिन वन्यजीव संरक्षक और बचावकर्ताओं के लिए चिंता और भय से पूर्ण होता है क्योंकि वे मासूम पक्षियों की पीड़ा और मृत्यु देखने के लिए खुद को पक्षियों को बचाने के लिए तैयार करते हैं।
पक्षियों को होने वाले नुकसान के कारण मुंबई 2009 में सिंथेटिक मांझा धागे के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने वाले पहला शहर में से एक था और जल्दी ही सभी शहरों में चाइनीज धागे के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक हैं।
दिल्ली सरकार ने मांझा धागे के सभी रूपों में प्रतिबंध लगाने की घोषणा की और केवल सूती धागे का उपयोग करके पतंग उड़ाने की अनुमति दी।
साल 2016 में राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आखिरकार इन असहाय प्रजातियों के जीवन को बचाने के लिए सिंथेटिक और नायलॉन मांजा के उपयोग पर संपूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया।
हालांकि अधिकारियों ने सिंथेटिक मांझा धागे के उपयोग पर प्रतिबंध तो लगा दिया गया लेकिन मौत का धागा बाजार में आज भी चोरी चोरी चुपके चुपके आ जाते हैं जिससे ना केवल पक्षी घायल हो जाते हैं बल्कि कई बार तो उनकी मौत भी हो जाती हैं। इसी के साथ मानव जाति का भी नुकसान होता है यहां तक कि कई बार तो लोगों को अपनी जिंदगी से भी हाथ धोना पड़ता है। लोग अभी भी एक दूसरे की पतंग काटने का आनंद लेने की सोचते हैं लेकिन पारिस्थितिकी खतरे को महसूस नहीं करते और ना ही उसे स्वीकार करते हैं। प्राथमिक उपचार के बाद पक्षियों को पूरी तरह से ठीक होने में कई दिन या महीने भी लग सकते हैं इस जोखिम को कम करने के लिए पतंग उड़ाने वालों को बिना कांच की कोडिंग वाले सादे सूती धागे का प्रयोग करना चाहिए ।
यदि किसी को पेड़ों में या तारों पर उलझे हुए धागे मिलते हैं तो उन्हें सावधानी से हटा देना चाहिए लोगों को खुले मैदान में पतंग उड़ाने चाहिए ।
सुबह और शाम के समय पक्षियों का विचरण का समय होता हैं इसलिए इस समय पतंगबाजी नहीं करनी चाहिए। इस समय पक्षी आम तौर पर सक्रिय रहते हैं और इस समय आकाश में उड़ने के लिए निर्भर होते हैं।
यदि आपको पक्षी के घोसले वाले क्षेत्रों के बारे में पता है तो उनके आसपास पतंग उड़ाने से बचें। इस तरह के उपाय से पक्षियों के लिए कम से कम खतरे और जोखिम को सुनिश्चित करेंगे।
यदि कोई घायल पक्षी मिले तो गले में फसी डोरी को बाहर ना निकालें क्योंकि यदि खून जम गया हैं तो उसे खींचने से खून ज्यादा बह सकता है उसको सावधानी पूर्वक डोरी को काट दें पक्षी की मदद करते समय शांति रखें और वहां पर हल्के कपड़े से ढक देना चाहिए जिससे वह पक्षी आपसे घबराए नहीं।।
*पक्षी प्रेमी*
*राकेश कुमार जांगिड़*
*प्राणीशास्त्र विभाग*
*पोदार कॉलेज*
*नवलगढ़*
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