Breaking News

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

राजस्थान में जुझारू और युवा नेता हो रहे है षडयंत्र के शिकार


■ बाल मुकुंद जोशी

राजस्थान में गहरी साजिश के तहत जुझारू और उभरते युवा नेताओं को किनारे लगाया जा रहा है? ऐसे षड्यंत्रों का ताजा शिकार हाल ही में हुए उपचुनावों में डॉ.किरोडी लाल मीणा, हनुमान बेनीवाल और नरेश मीणा हुए है. इससे पहले विधानसभा के आम चुनाव में राजेंद्र राठौड़ और सुभाष महरिया को भी ठिकाने लगाया गया था.

  

    इस सूबे में कांग्रेस-भाजपा के कई वरिष्ठ नेता पहले से ही 'भविष्य के नेताओं' को बिछात बिछाने नहीं दे रहे है. ऊपर से अब ताजा-ताजा नये बने 'पावर सेंटर' वाले नेतागण भी पार्टी की एस्टेट को 'बिल्ले' लगा रहे है. इनमे भाजपा में बाबा है, जिनको भ्रातृत्व मोह में फंसाकर पर्ची वाले नेताजी ने जयपुर में बैठकर तमाशा देखा है.


   भाजपा में तो बाबा को चक्रव्यूह में फंसाकर अभिमन्यु बना दिया लेकिन कांग्रेस में तो नरेश मीणा के संघर्ष को स्वीकार तक नहीं किया गया. यह जानते हुए भी देवली-उनियारा में पंजे को कोई मजबूत कर सकता है तो वह जुझारू नरेश ही है लेकिन सांसद जी की जिद्द और चांदी की खनक ने युवा नेता को निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने को मजबूर कर दिया हालांकि नरेश की युवा ताकत के आगे इस सीट को 'फूल' ने हथिया लिया. भले ही इस युवा नेता की सियासत में जमने की लड़ाई लंबी हो सकती लेकिन उम्र तो आज भी उसके पक्ष में है.


   प्रदेश की राजनीति का  सबसे बड़ा 'लड़ाका' है हनुमान बेनीवाल. जो अजेय योद्धा की तरह गत दो दशक से निरंतर आगे ही बढ़ता ही जा रहा था. यह दीगर है किशउसके विरोधी किस्म का होने से उसके विरोधी नाखुश थे. चुनाचें दूसरी जाति के नेताओं के अलावा जाट नेताओं में उसकी  लोकप्रियता को लेकर काफी खिन्नता थी. इसको लेकर उपचुनावों में बेनीवाल से नाइत्तफाक रखने वाली तमाम सियासी ताकतों ने नैतिकता,संगठन के प्रति वफादारी और सिद्धांतों को ताक में रख कर बनीवाल की अपराजित पारी को समेट दिया. कुल मिलाकर धर्मपत्नी कनिष्का बेनीवाल को विधानसभा पहुंचाने की उनकी हसरत धरी की धरी रह गई. हनुमान बेनीवाल के हार गले पडने में संगठित विरोधियों की ताकत ने तो काम किया ही लेकिन उनका अति बड़बोलापन भी नतीजे को विपरीत दिशा की ओर ले गया.


बहरहाल प्रदेश की सियासत के मैदान में नये घोड़े उठा-पटक के बाद खड़े होते रहेंगे लेकिन षड्यंत्र कर वरिष्ठ और नए पावर सेंटर के जनाधार विहीन नेतागण अपने संगठनों की जड़े खोद रहे है.