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मुकद्दर का सिकंदर भजनलाल शर्मा


■ बाल मुकुंद जोशी


    राजस्थान में हुए उपचुनाव के नतीजों से राज्य की भजनलाल सरकार का अगले माह आयोजित होने वाला एक वर्ष का सफल कार्यकाल अब ओर जोश खरोश के साथ मनेगा. दरअसल उप चुनाव के परिणाम ने "सोने पर सुहाग वाली" कहावत को चरितार्थ किया. उपचुनाव में भाजपा ने एक के बजाय पांच सीट पर जीत हासिल की है. जिससे यह प्रतीत होता है कि सरकार के कामकाज पर जनता ने मोहर लगा दी है.


    यह दीगर है कि सतही तौर पर राजस्थान में कानून व्यवस्था, रोजगार और रोजमर्रा के सरकारी कामकाज की रफ्तार काफी मंथर गति से चल रही है. जो भी हो नतीजे तो भजनलाल सरकार के लिए खुशनुमा वाले हैं. कहते हैं जिस पर ईश्वर की मेहरबान होती है तो उसका कोई बाल बांका भी नहीं कर सकता.


    ऐसा लगता है भजनलाल शर्मा पर "प्रभु कृपा"  काफी है.जिस प्रकार नाटकीय घटनाक्रम के बीच उनको मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया और करीब एक वर्ष के सामान्य से भी कमजोर सरकार के संचालन के बावजूद उपचुनाव में भारी सफलता अर्जित होना गोया कि देवी-देवताओं ही

भजनलाल सरकार को आगे बढ़ा रहे है. उनकी

उदारवादी छवि और तथाकथित नौसिखिएपन वरदान साबित हो रही है,जबकि दूसरी ओर विपक्ष का तथाकथित अनुभव घमंडी स्वरूप में जनता को दिखाई पड़ रहा है.


   कुल मिलाकर भले ही उपचुनाव के नतीजों को सरकार की ताकत की जीत बताकर हार से विपक्ष अपना पल्ला झाड़े किंतु सच्चाई यह भी है की प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी अभी भी आंतरिक कलह से ऊभरी नहीं है.जो उन्हें पिछले शासन काल में मिली थी. देखने में आया है अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बाद अब कांग्रेस में गोविंद डोटासरा का भी अपना गुट है.


    बहरहाल उपचुनाव के नतीजों से भाजपा में जश्न का वातावरण है और कांग्रेस में अजीब सी खामोशी. भविष्य में अब राजस्थान में कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर नई चर्चाओं का जन्म होगा तो राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी अपने पुनर्जन्म के लिए  जद्दोजहद करेगी क्योंकि कांग्रेस ने आम चुनाव में सरकार खोने के बाद उपचुनाव में चार सीटों का घाटा कर लिया है. जबकि आरएलपी विधानसभा से वाश आउट हो गई है. ऐसे में दोनों ही सियासी दलों को अपनी-अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए अपनी-अपनी रणनीति बनानी होगी.