Breaking News

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

बेलगाम है राजस्थान में नेताओं की बदज़बानी

■ बाल मुकुंद जोशी

राजस्थान में हाल ही में हुए उपचुनाव के दौरान राजनेताओं ने मुद्दों को ताक पर रखकर केवल एक-दूसरे के खिलाफ बदज़बानी का भरपूर इस्तेमाल किया. बिना किसी संकोच और शर्म के राजनेताओं की बिगड़ी भाषा राजस्थान में शायद इससे पहले कभी सुनने और देखने को नहीं मिली हालांकि जनता ने भी नेताओं की नौटंकियों का भरपूर आनंद ही लिया .वह भी अपनी समस्याओं पर कम और नेताओं की गाली-गलौच पर ज्यादा आपस में बतियाती नजर आई . 


   लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के "गमछा डांस"  की शौहरत इतनी फैली की उप चुनाव में हर कोई नेता या तो खुद नाचने लगा या फिर मतदाताओं ने नेताजी को नृत्य करने को मजबूर कर 'डांसर' बना दिया. नाचने कूदने के चक्कर में जनता की मूलभूत समस्याएं फूर्र हो गई और राज्य सरकार के करीब एक साल के शासन पर भी कोई गंभीर चर्चा नहीं हो पाई . प्रचार अभियान के दौरान मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अपनी सरकार की थोथी वाहवाही जरूर की लेकिन वो जनता के गले कम उतरी. उपचुनाव का माहौल जातिवाद और वैमनस्यता के भेंट चढ गया. यहां तक की विपक्षी दल के नेताओं भी भजन लाल सरकार की खिंचाई करने की बजाय अपनों की ही रङक निकाल रहे थे.

  

  दरअसल इन उपचुनाव के नतीजों से भाजपा  कांग्रेस को फर्क नहीं पड़ रहा था.ऐसे में हर प्रभावी नेता अपना खेल-खेल रहा था. विधायक से इस्तीफा देकर सांसद बने हनुमान बेनीवाल,पत्नी को और बृजेंद्र ओला पुत्र को विधानसभा की दहलीज तक ले जाना चाहते थे,जिसमे दोनों ही सांसद असफल रहे.परिवार के ही सदस्य को विधायक बनाने की ख्वाहिश मंत्री डॉ किरोडी लाल मीणा की भी अधूरी रह गई. वह भी अपने लघु भ्राता जगमोहन मीणा को दौसा से 'माननीय' बनाना चाहते थे.


    उपचुनाव में सबसे जबरदस्त झटका राजस्थान में युवाओं के आइकन बन चुके हनुमान बेनीवाल को लगा,जो पिछले दो दशक से सियासत के मैदान में अजय पारी खेल रहे थे. खींवसर का चुनाव सबसे प्रतिष्ठा का रहा. इस चुनाव में सबसे ज्यादा असंसदीय भाषा का बोलबाला रहा. बेनीवाल की जीत में कांग्रेस ने गठबंधन तोड़कर रोड़ा खड़ा किया. सच्चाई है कि पीसीसी चीफ डोटासरा के इस निर्णय ने खींवसर से "बोतल" को विधानसभा पहुंचने के रोक दिया भले ही पर  "पंजे" की भी जमानत जब्त हो गई. गौरतलब है पर्दे के आगे-पीछे "सुपर जाट नेता" का खेला था.


 बहरहाल मौसम पूरी तरह ठंडा हो गया है लेकिन सियासत का लावा शांत होने का नाम नहीं ले रहा है. स्तरहीन बोल का सिलसिला बदस्तूर जारी है. शायद राजनेताओं ने इसे ही अपनी लोकप्रियता का नुक्शा मान लिया है .तभी तो राजस्थान प्रदेश युवा कांग्रेसाध्यक्ष व विधायक अभिमन्यु पूनिया ने बाड़मेर में ऐसा बयान दिया जो  निर्वाचित जन प्रतिनिधि के लिए तो बिल्कुल भी  शोभा नहीं  देता. कांग्रेस से भाजपा में आए राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने भी कल जयपुर से प्रकाशित दैनिक भास्कर में इंटरव्यू देते समय पीसीसी चीफ को 'चीयर लीडर्स'का पुरुष वर्जन बताया.इसके पहले मंत्री मदन दिलावर ने भी इसी तरह की संज्ञा से डोटासरा को परिभाषित किया था .कुल मिलाकर राजस्थान में ऐसी परंपरा की शुरुआत अदब वाले सूबे को बिहार और उत्तर प्रदेश की श्रेणी में ला खड़ा करेगी.