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रेडियो: सुनने की कला, संवाद का जादू - विश्व रेडियो दिवस – 13 फरवरी Radio: The Art of Listening, The Magic of Communication

Radio: The Art of Listening, The Magic of Communication


विश्व रेडियो दिवस प्रतिवर्ष 13 फरवरी को मनाया जाता है, यह दिन रेडियो की शक्ति को सम्मानित करता है, जो न केवल सूचना और मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि समाज को जोड़ने और लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करने का माध्यम भी है। इस दिन का उद्देश्य रेडियो के महत्व को समझाना और यह साबित करना है कि रेडियो आज भी दुनिया भर में संवाद का सबसे प्रभावी और सुलभ माध्यम बना हुआ है।


रेडियो का जन्म और विकास 

गुग्लिएल्मो मारकोनी और जगदीश चंद्र बोस—दो महान वैज्ञानिकों ने रेडियो के इतिहास में अमिट योगदान दिया है। जबकि मारकोनी ने 1895 में पहली सफल रेडियो संचार की नींव रखी, बोस ने उससे पहले, 1895 में ही, कलकत्ता में रेडियो तरंगों का प्रयोग कर यह साबित किया कि संचार बिना तार के भी संभव है। उन्हें "वायरलेस संचार का जनक" माना जाता है।


रेडियो की जादुई यात्रा:

1920 के दशक में रेडियो प्रसारण ने व्यावसायिक रूप लिया और पहली बार दुनिया भर में जानकारी और मनोरंजन का एक नया दौर शुरू हुआ।

1950 के दशक में रेडियो सूचना का सबसे प्रमुख स्रोत बन गया।

आधुनिक युग में, जहां डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का दबदबा बढ़ा, वहीं रेडियो की महत्ता आज भी बरकरार है।

रेडियो कैसे काम करता है?

रेडियो विद्युत चुम्बकीय तरंगों का इस्तेमाल करता है। यह दो मुख्य भागों में बांटा जाता है:


रेडियो ट्रांसमीटर: यह ध्वनि को विद्युत चुम्बकीय तरंगों में बदलकर प्रसारित करता है।

रेडियो रिसीवर: यह इन तरंगों को पकड़ता है और फिर उन्हें ध्वनि में बदल देता है।

इस प्रकार, AM (एम्प्लीट्यूड मॉडुलेशन) और FM (फ्रीक्वेंसी मॉडुलेशन) दोनों तकनीकों के माध्यम से रेडियो की आवाज हमारे पास पहुँचती है।


रेडियो का महत्व आज भी क्यों है?

सुलभता: रेडियो को इंटरनेट या स्मार्टफोन की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए यह दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रभावी है।

विश्वसनीयता: रेडियो, विशेष रूप से आपातकालीन परिस्थितियों में, सक्रिय रहता है और लोगों तक तुरंत जानकारी पहुँचाता है।

सस्ती तकनीक: न्यूनतम बुनियादी ढांचे के साथ रेडियो प्रसारण हो सकता है, जो इसे बेहद सस्ता बनाता है।

भारत में रेडियो का इतिहास

भारत में रेडियो प्रसारण की शुरुआत 1923 में बॉम्बे रेडियो क्लब से हुई थी। इसके बाद, ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की स्थापना 1956 में हुई, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा रेडियो नेटवर्क है। 1977 में भारत में एफएम रेडियो की शुरुआत हुई और 2001 में पहला निजी एफएम स्टेशन रेडियो सिटी बैंगलोर लॉन्च हुआ।


रेडियो का सोशल रोल:

समाज को जोड़ना:

रेडियो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को जोड़ने का काम करता है। यह न केवल विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को सम्मान देता है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को एक आवाज़ देता है।


सूचना और शिक्षा का स्रोत:

आज भी, जब इंटरनेट की दुनिया में झूठी सूचनाओं का बाज़ार गर्म है, रेडियो सटीक और विश्वसनीय सूचना का प्रमुख स्रोत बना हुआ है।


आपातकालीन सहायता:

रेडियो आपातकालीन स्थिति में जीवन रक्षक साबित होता है। प्राकृतिक आपदाओं, संकटों और अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं के दौरान, रेडियो सबसे सुलभ और विश्वसनीय सूचना का साधन है।


रेडियो का भविष्य:

हालांकि डिजिटल मीडिया और इंटरनेट के द्वारा नए तरीके सामने आ रहे हैं, फिर भी रेडियो अपने सरल और प्रभावी स्वरूप के कारण लोगों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगा। यह न केवल एक तकनीकी उपकरण है, बल्कि एक ऐसा माध्यम है जो समाज को एकजुट करने का काम करता है।


रेडियो ने हमेशा हमारी आवाज़ को फैलाया है, हमसे जुड़ा है, और हमें सही समय पर सही जानकारी दी है। विश्व रेडियो दिवस हमें यह याद दिलाता है कि रेडियो एक सशक्त माध्यम है जो हमेशा हमारी ज़िंदगी में महत्वपूर्ण रहेगा, चाहे तकनीकी युग कितना भी बदल जाए।