इन्दर राजा तनै के सूझीं
सावन म आयो कोनी
खड़्या उड़ीकै खेत बाटड़ली
मेह क्यूं बरसायो कोनी
सारो सावण बीत्यो ज्याव
काऴा बादऴ ल्यायो कोनी
बाटा जोव भूमिसुत कद सूं
रिमझिम झड़ी लगायो कोनी
ताती ताती लूवां चालै
गड़गड़ करतो आज्या
धरां तरस री कद सूं बैठी
आकर हेत जता ज्या
जद बरस जद घणो जमानो
मिनखां टैम घणो चोखो होवै
कड़कै बिजऴी बरसै मेघा
धरा हरियाऴी सोवणी सोवै
रमाकान्त सोनी नवलगढ़